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Showing posts from 2017

ग़ज़ल

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कहाँ  लिखू मैं पैगाम, ना जवाब आया.  ये चिठ्ठी , ये खत ना जवाब आया ,,,1  कोशिश की हमने लिखने का तेरा नाम.  कागज़ो को तुझ पर  ऐतबार आया.  ये बोझिल हुई नज़रे  तुझे एकटक देखकर,,,2  ख्याल आया तेरी गलियों में घूमकर।  अमावश की रातों में जब रोशन थी  गलिया।  पी रहा था , जाम मैं तेरे आंशू  को घोलकर।  ये खुशनुमा पल कहीं  अलगार  न कर जाये।    रात की ख़ामोशी  तुझ से प्यार ना कर  जाये,,,,3  कहाँ  लिखू  मैं  पैगाम , न जवाब आया।  ये चिठ्ठी  , ये खत न जवाब आया।   4  गूंजने लगी गलियां  खनकती  पाजेब से.  यहीं कही हो इस मचलती बहार में.  कह दो अम्मा से , क्यों टूटे बहार में.  क्या लिखा था खत , तुम मेरे नाम में.   5  ये छोटे से जवाब बहुत कुछ कहते है.  मेरी तन्हाई तुझे  पूछते है.   6  ख्वाब के सितारे खिन अलगअर न कर जाये.  रात की ख़ामोशी तुझसे कहीं प्यार न हो जाये.  अधूरी से हो ,अगर परछाई मेरी.  संभाले रखा खत की जवाबी तेरी.   7  सुना है, लोग पूछते है इस उश्र  पर मेरा नाम.  कह क्यों न देती  हो तम्मना  मेरा।  कुरान की  मैं में ढूंढती मुझे  घुल चुकी हो रामायण की चौपाई में.   8  ये 

मुलाक़ात

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एक मुलाकातों  का दौर जारी है.  हमारी  मंज़िलों की उड़ान कहीं बाकी  हो,   तुम ना  ये समझ लेना हम भूल चुके है , ये मुलाकातों का दौर अभी बाकि है.  मुझे मिलने की तेरी कोई ख्वाहिश  हो.  आज आधी अधूरी फरमाइश हो , देखो हम टूट चुके है, नज़रो का दौर जारी है.  ये मुलाकातों का दौर अभी बाकि है.  देखो हम मिले नहीं  लगता है , लगता है  इस आने वाले मौसमो की कोई नयी  फरमाइश है.  दिल लगाने  वलेसोचता क्या है.  ये मुलकातो  अभी बको है.  अवधेश कुमार राय  "अवध "

मुलाक़ात

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ये मुलाकातों का दौर जारी है.  सनम ये न बिखरी हुई जवानी है.  देखों मिलना  हमारा  मुनाशिब नहीं इश्क़ में. ये ठहरी  हुई जो मेरी ज़िंदगानी है.  आओ मिलकर खो जाऊ. जो फिर बिछडन की न बात हो पाए.  जो हमारे बीच दूरियों की  रेखा है.  उससे कैसे भी  हमें बहार  निकला जाएँ। ये मुलाकातों का दौर जारी है.  मिलना जो पते  पर होता था हमारा।  अब गुमनाम सा हो रहा है, ये ज़माना।  उससे कैसे भी हमें बहार निकला जाये।  अवधेश कुमार राय "अवध "

मदहोश

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कुछ मदहोशी सी फैली है , फ़िज़ा में।  कुछ तो तेरी निगाहों  का फितूर , ये खंज़र आँखों से न देखा करे हमें.  हम कहीं घायल न हो जाये , ये घायल दिल लिए  तेरे शहर  में।  मासूमियत नज़ारों  की  प्याले की बहार है.  छलकती मदहोशी तेरे रंजो ग़म का इकरार है, बड़े मासूम हो आप क़ैद कर ली हो दिल में.  ऑंखें सबनमी  जो प्यार कर रहे हैं.  ये घायल दिल लिए तेरे शहर  में। .  अवधेश कुमार राय  :"अवध"

ज़िन्दगी

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कुछ तीखा सा कुछ नरम है. ऐ ज़िन्दगी तेरा क्या रंग है. कुछ बुझी - बुझी कुछ जली - जली. क्यों गफलतों से तू बदरंग है. कुछ नज़ाकत सिख ले हमसे. क्यों खफा- खफा तेरा रंग है. सुना था तुझसे किसी की चाहत रही, कह न सकी साकी यही गम रही.

इज़ाज़त

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इतनी इज़ाज़त हो फकत सनम तेरी चाहत हो. अधरों पर मुस्कान आँखों में इज़ाज़त हो. न हो ख़ामोशी की सुर्ख परत. दिल का कोना - कोना मोहब्बत की आहट हो. ज़रा ज़र्रे से केह दो ये आधी अधूरी रवायत है. चाहत का अफसाना,लिए सनम तेरी इज़ाज़त है. अवधेश कुमार राय "अवध"

इज़हार

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फरमान है, या इज़हार है, कुछ तो है, सनम जहाँ इंकार है, ना समझ नुसरत मेरी बातों को  लफ़्फ़ाज़ी। दिल तेरे इश्क़ का फनकार है. लूट लो हमें अपने हुश्न से. दिल अक्लियतें तेरी इज़हार है. मैं फनकार तेरी तृष्णागी का. दिल तेरे इश्क़ का फनकार है. आज आये है, तौफ़ीक़ हमारे सब्र पर. दिल तम्मना तेरा इज़हार है. साकी मेरी महफ़िल वही. दिल तेरे इश्क़ का फनकार है, अवधेश कुमार राय "अवध"

आँखे

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जब कतरा - कतरा आँखो से बह निकले हो सनम. सनम कैंसे रोकु जींदगी से गुजरे हो तुम. कल तक इन आँखो की रौशनी हो कहते. आज क्यों अमावश की चांद हो निकले. #अवध

रात गहरी,

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मेरीमेरी नई कविता

राम जाने कब बरसेगा पानी

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मोहब्बत

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अवधेश कुमार राय तेरी हर बात मुहब्बत में गवारा कर के. दिल  के बाजार में बैंठे इशारा कर के. सोच में हुं सितारो की जरा आंख लगे. चांद को छत पर बुला लुंगा इशारा कर के. आसमानो की तरफ फेंक दिये हैं, हमने. चंद मिट्टी को चिरागो का.सितारा कर.के. एक चिंगारी नजर आती हैं, बस्ती में उसे. वो अलग हट गया.आंधी को इशारा कर के. मैं वो दरियां.जिसमें हर बुंद भंवर जैंसी. तुम ने.अच्छा किया.मुझसे किनारा कर के. #अवध

इजहार

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अवधेश राय. चले थे कभी कुच -ए- सनम की तरफ. फिर उसके बाद न देखा कभी इरम की तपफ. जो चांदनी बनी थी उसकै चेहरे पर आकर. जो रात गई वह जुल्फे खम -ब- खम की तरफ. कि जैंसे मुद्दतो कोई इधर नहीं गुजरा. हर एक बार रुख था कदमो की तरफ. किसा का हुश्न -ए- अदा किस कदर देखुं. मेरी तरक्की तो होती हैं, कम से कम की तरफ. ना कोई आह न शिकवा न कोई रंज मलाल. मेरा निकाह रही इश्क की भरम की तरफ. अवधेश कुमार राय "अवध".

इकरार

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अवधेश राय कुछ कह रही थी चांद मुझ से. कुछ नगमें सुनाओ यार के. कहां खोये हो नुर -ए- मौसम. तुम्हारी मंजील नहीं बिते दियार में. कुछ कह रहीथी चींद मुझसे. कयां बताऊं रात -ए- मुशाफिर. गुमनाम हुं, ना कोई कलमों का सागिर्द रात कि निखरती हुश्न में मैं कहां तुम कहां. कोई नहीं अब मंजील के दियार में. #अवध

नसीब

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अवधेश कुमार राय. कुछ तो करम कर मोहब्बत. आज मेरी नसिब पर. कुछ तो रुठी हैं, साहिल. आज मेरी नसिब पर. प्यार ने संवारा था, वजूद मेरा. आज खिच गई तलवार मेरी इकरार पर. #अवध

Miscellaneous

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जब टि.वी   देखता  हुं. मैं  दुनिया  देखता  हुं. एक  खुबसूरत  सी ल ड़ती. हस - हस   कर  मजमा  बताती  है..... हर  लम्हों  का  हिसाब. घड़ी की सुईयां में बताती हैं. कभी  मुस्कान  दिल  जित  लेती  हैं. हस -  हस  कर  मजमा  बताती  हैं..... बैठ  गया  तुझसे  कैंसी  मोहब्बत  कर. प्राईम  प्रसारण  के  सार  में. जैंसे  टि. वी  नहीं  बिवी  के  पास  में. हस -  हस  कर  मजमा  बताती  हैं.... #अवध. Add caption Awadheshrai Kumar Rai

प्रेम

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कुछ धागे मोहे हमको है. जीवन में हम बहके - बहके है. मेरी ललीता मेरी प्रेयसी. फागुन में प्रित ठहरी - ठहरी है. छोड़ दो जग भई बेगानी. रखी कयां आंखो में दिवानी. आ जाओ संग बरसो गोरी. फागुन में प्रित ठहरी - ठहरी हैं. #अवध Aawadhesh kumar Rai. Aw

शराब

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बुझी - बुझी जल उठती है. मयखाने में दिल की हाला. साकी कह दुं मन की बाते. यौवन की दिल बहकी बाला. जल उठी हो अमावश में भी. रौशनी बन दिल की हाला. छलकी बन अंगूरी राते. मदहोशी बन साकी बाला. #अवध Add captionAwadhesh Kumar Rai 

लम्हा

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हर लम्हा चाहता तुझे. बेकरारी में निखारता तुझे. कोई काठ की कठपुतली नहीं. जो दिल को तोड़ दिया तुमने. मैं सब्र की इंतहा हो चला. मोहब्बत का.कुसूरवार हो चला. #अवध

मोहब्बत

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जलवा

उफ ! ये नगमा रेहनुमा के. तेरी जन्नत -ए- हुश्न आसमान में. कोई मेहकशी दिलरुबा हैं. तेरी जलवा शहर आशीका हैं, किसी कुफ्र की दिल -ए- तमन्ना. मेरी मिजाज -ए- आशीकी हैं. सब्र कर दिलनशी मेरे. तेरा जलवा शहर आशीका हैं. #अवध 

उङान

पर कतरने लगे आजकल. हौंसलो की मेरी. मेरी जीवन से जुङी . एहसासो की मेरी. सिद्दत से चाहत हैं. बवलंदियो को हम. शिकवा नहीं  राहों में फिसल जाने की. ये जो टुटे कल्पुर्जे हैं, मेरी जीवन  के. दम भरती मेरे  हौंसले में. फिर उङान भरनी हैं, इस निली संहमरमर आसमां  में. जो सजाएँ  हम सपनों  में. शिकवा नहीं  राहों  में. फिसल जाने की. #अवध 

Miscellanious

मुझे  तेरे साथ गुजरने वाली वक्त   का एहसास ना रहा. मेरे जिंदगी का लुत्फ़ बस लुत्फ़ रह गया. यह जो काजलो  का व्यपार करती मोहसिन. मेरा दिल तेरा तलफगा हो जाता हैं. #अवध 😜

मदहोश

केवल प्रेम नहीं  मैं कौतूहल हुं. उनकी प्राणो कि मैं संगत हुं. जैंसें मृग की प्रेम दिवानी. छलित हुई वो पगली बेगानी हैं........१ अपने सजल विरह आँखों से बहती अश्को  कि दरिया. ये कलुषित प्रेम दिवानी. छलित हुई वो पगली बेगानी हैम...........२ कोरस हैं, सिर्फ कोरस पगली. परिजात की खोज में भटकती सजनी. हरण भय हैं, मृगशिरा के. छलित हुई वो पगली बेगानी हैं............३ #अवध💃

देश प्रेम

मेरा प्रेम नही मैं पत्थर साहिल. फुलों की एक दिन रही. तोङ लिया मुझ को डाली से. फेंक दिया मौला पर ही. मेरा प्रेम मेरा ही इश्वर शाश्वत. चांहु ना कुछ और कोई. फेंक दे मुझको अंधेरी जज्बातो में. मैं तेरे नौयौवन की रसधार नही. प्रेम विराग कि नवयुग बेला. मैं तेरा यौवन का श्रृगार नही. मेरा मुल्क प्रेम मेरा इश्वर शाश्वत. चांहु ना मैं कुछ और कोई. #अवध💑

इजहार

रात भर मेरे स्वपन की जो आहट दिवानी बनी. वह सुबह होने से पहले बेगानी हो गई. अबयह जो उदाशी भरी सन्नाटो की खिझ. उस स कैसे निकल जाये..........१ उधर गली में तेरे दिदार को बैंठे रहे. कम से कम आँखों से देख ले. कि तमन्ना उन तक पहुँच जाये.........२ मैं, अपने पन्नों की लकिरो में तेरे नाम का सिंदूर भरता. मगर हमने तुम्हें किसी गैर कि बांहों में देखा. तुम तो सुबह होने से पहले बेगानी हो गई.......३ #अवध🙅