ज़िन्दगी

कुछ तीखा सा कुछ नरम है.
ऐ ज़िन्दगी तेरा क्या रंग है.
कुछ बुझी - बुझी कुछ जली - जली.
क्यों गफलतों से तू बदरंग है.
कुछ नज़ाकत सिख ले हमसे.
क्यों खफा- खफा तेरा रंग है.
सुना था तुझसे किसी की चाहत रही,
कह न सकी साकी यही गम रही.

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