मदहोश

कुछ मदहोशी सी फैली है , फ़िज़ा में। 
कुछ तो तेरी निगाहों  का फितूर ,
ये खंज़र आँखों से न देखा करे हमें. 
हम कहीं घायल न हो जाये ,
ये घायल दिल लिए  तेरे शहर  में। 

मासूमियत नज़ारों  की  प्याले की बहार है. 
छलकती मदहोशी तेरे रंजो ग़म का इकरार है,
बड़े मासूम हो आप क़ैद कर ली हो दिल में. 
ऑंखें सबनमी  जो प्यार कर रहे हैं. 
ये घायल दिल लिए तेरे शहर  में। . 

अवधेश कुमार राय  :"अवध"

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