मुलाक़ात
ये मुलाकातों का दौर जारी है.
सनम ये न बिखरी हुई जवानी है.
देखों मिलना हमारा मुनाशिब नहीं इश्क़ में.
ये ठहरी हुई जो मेरी ज़िंदगानी है.
आओ मिलकर खो जाऊ.
जो फिर बिछडन की न बात हो पाए.
जो हमारे बीच दूरियों की रेखा है.
उससे कैसे भी हमें बहार निकला जाएँ।
ये मुलाकातों का दौर जारी है.
मिलना जो पते पर होता था हमारा।
अब गुमनाम सा हो रहा है, ये ज़माना।
उससे कैसे भी हमें बहार निकला जाये।
अवधेश कुमार राय "अवध "
सनम ये न बिखरी हुई जवानी है.
देखों मिलना हमारा मुनाशिब नहीं इश्क़ में.
ये ठहरी हुई जो मेरी ज़िंदगानी है.
आओ मिलकर खो जाऊ.
जो फिर बिछडन की न बात हो पाए.
जो हमारे बीच दूरियों की रेखा है.
उससे कैसे भी हमें बहार निकला जाएँ।
ये मुलाकातों का दौर जारी है.
मिलना जो पते पर होता था हमारा।
अब गुमनाम सा हो रहा है, ये ज़माना।
उससे कैसे भी हमें बहार निकला जाये।
अवधेश कुमार राय "अवध "
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