इजहार
रात भर मेरे स्वपन की जो आहट दिवानी बनी.
वह सुबह होने से पहले बेगानी हो गई.
अबयह जो उदाशी भरी सन्नाटो की खिझ.
उस स कैसे निकल जाये..........१
उधर गली में तेरे दिदार को बैंठे रहे.
कम से कम आँखों से देख ले.
कि तमन्ना उन तक पहुँच जाये.........२
मैं, अपने पन्नों की लकिरो में तेरे नाम का सिंदूर भरता.
मगर हमने तुम्हें किसी गैर कि बांहों में देखा.
तुम तो सुबह होने से पहले बेगानी हो गई.......३
#अवध🙅
वह सुबह होने से पहले बेगानी हो गई.
अबयह जो उदाशी भरी सन्नाटो की खिझ.
उस स कैसे निकल जाये..........१
उधर गली में तेरे दिदार को बैंठे रहे.
कम से कम आँखों से देख ले.
कि तमन्ना उन तक पहुँच जाये.........२
मैं, अपने पन्नों की लकिरो में तेरे नाम का सिंदूर भरता.
मगर हमने तुम्हें किसी गैर कि बांहों में देखा.
तुम तो सुबह होने से पहले बेगानी हो गई.......३
#अवध🙅
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