अवधेश राय कुछ कह रही थी चांद मुझ से. कुछ नगमें सुनाओ यार के. कहां खोये हो नुर -ए- मौसम. तुम्हारी मंजील नहीं बिते दियार में. कुछ कह रहीथी चींद मुझसे. कयां बताऊं रात -ए- मुशाफिर. गुमनाम हुं, ना कोई कलमों का सागिर्द रात कि निखरती हुश्न में मैं कहां तुम कहां. कोई नहीं अब मंजील के दियार में. #अवध
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