कलम -ए- जिंदगानी

कितने नज्म लिख डाले हमने दिलरुबा शौक से.
सारी रंगत बटोर डाली सबनम हमने नुर के.
तेरे बदन की रंगत चुरा कर हमने कागज में उतारी हैं,
बङे शौक से कागज ने मेरे दिल की अदा को खुद में उतारी हैं,.......१

किस दर पर फिरते रहे अवध ,
दिल की नुर का ना ख्याल रहा.
सब बयान कर दी दिल की कलम ने कागजों पर शौक से.
बङे शौक से कागज ने मेरे दिल की अदा को खुद में उतारी हैं,....२

नजर नजर खोया दिल की फजल ने.
ऐ मासुक मेरी दौलत तुम सिमटी पन्नों की गजल में.
हर कल्मा मेरी मोहब्बत का दिवाना हैं,
बङे शौक से कागज ने मेरे दिल की अदा को खुद में उतारा हैं,

#अवध 💘

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