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भारत तालिबान बनने की ओर अग्रसर

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भारत तालिबान बनने की ओर अग्रसर है, यदि मैं ये कहूँ, तो आप की पहली प्रतिक्रियाँ क्यां होगी। चौकिये मत इसका जवाब मध्य दिल्ली के चाँदनी चौक के पास कुछ सेक्युलर लोंगो ने पार्किंग को लोकर कहाँ सुनी में हिंदु मंदिर को तोङ दिय़ा। अल्लाह हुँ अकबर कहते हुए मंदिर का दरवाजा प्रतिमा को क्षतिग्रस्त कर दिया है। इसे लेकर देश में कोई उबाल नहीं हैं। ये खूद को अल्पसंख्य़क होने का रोना रोते हैं। देश के बहुसंख्यक समाज की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाते हैं, अब देश खतरे में नहीं है, किसी प्रकार की कोई असहिष्णुता नहीं है, कैंसे ये मंदिर पर हमला कर सकते है, देश में अब तक कितने मंदिर तोङे जा चुके है, एक बाबरी मस्जिद के नाम पर इनके सियासी सलाहकार सियासत करते आये है, अब हिंदुओं की भावनाओं का सुध लेने वाला कोई नहीं। जो हिंदुओं के नाम पर राजनिति करते हुए फर्स से अर्श पर चली गई। प्रचंड जनादेश दिया देश के तमाम हिंदु परिवार नें । चले थे, कश्मिर में कश्मीरी पंडितों को बसाने अब करने लगे तुष्टिकरण। भाजपा के नेता इससे बच नहीं सकते दिल्ली की पुलिस केंद्र सरकार के अधिन है, जो कुसुरवार है, उसे सख्त से सख्त...

ग़ज़ल

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कहाँ  लिखू मैं पैगाम, ना जवाब आया.  ये चिठ्ठी , ये खत ना जवाब आया ,,,1  कोशिश की हमने लिखने का तेरा नाम.  कागज़ो को तुझ पर  ऐतबार आया.  ये बोझिल हुई नज़रे  तुझे एकटक देखकर,,,2  ख्याल आया तेरी गलियों में घूमकर।  अमावश की रातों में जब रोशन थी  गलिया।  पी रहा था , जाम मैं तेरे आंशू  को घोलकर।  ये खुशनुमा पल कहीं  अलगार  न कर जाये।    रात की ख़ामोशी  तुझ से प्यार ना कर  जाये,,,,3  कहाँ  लिखू  मैं  पैगाम , न जवाब आया।  ये चिठ्ठी  , ये खत न जवाब आया।   4  गूंजने लगी गलियां  खनकती  पाजेब से.  यहीं कही हो इस मचलती बहार में.  कह दो अम्मा से , क्यों टूटे बहार में.  क्या लिखा था खत , तुम मेरे नाम में.   5  ये छोटे से जवाब बहुत कुछ कहते है.  मेरी तन्हाई तुझे  पूछते है.   6  ख्वाब के सितारे खिन अलगअर न कर जाये.  रात की ख़ामोशी तुझसे कहीं प्यार न हो जाये.  अधूरी से ह...

मुलाक़ात

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एक मुलाकातों  का दौर जारी है.  हमारी  मंज़िलों की उड़ान कहीं बाकी  हो,   तुम ना  ये समझ लेना हम भूल चुके है , ये मुलाकातों का दौर अभी बाकि है.  मुझे मिलने की तेरी कोई ख्वाहिश  हो.  आज आधी अधूरी फरमाइश हो , देखो हम टूट चुके है, नज़रो का दौर जारी है.  ये मुलाकातों का दौर अभी बाकि है.  देखो हम मिले नहीं  लगता है , लगता है  इस आने वाले मौसमो की कोई नयी  फरमाइश है.  दिल लगाने  वलेसोचता क्या है.  ये मुलकातो  अभी बको है.  अवधेश कुमार राय  "अवध "

मुलाक़ात

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ये मुलाकातों का दौर जारी है.  सनम ये न बिखरी हुई जवानी है.  देखों मिलना  हमारा  मुनाशिब नहीं इश्क़ में. ये ठहरी  हुई जो मेरी ज़िंदगानी है.  आओ मिलकर खो जाऊ. जो फिर बिछडन की न बात हो पाए.  जो हमारे बीच दूरियों की  रेखा है.  उससे कैसे भी  हमें बहार  निकला जाएँ। ये मुलाकातों का दौर जारी है.  मिलना जो पते  पर होता था हमारा।  अब गुमनाम सा हो रहा है, ये ज़माना।  उससे कैसे भी हमें बहार निकला जाये।  अवधेश कुमार राय "अवध "

मदहोश

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कुछ मदहोशी सी फैली है , फ़िज़ा में।  कुछ तो तेरी निगाहों  का फितूर , ये खंज़र आँखों से न देखा करे हमें.  हम कहीं घायल न हो जाये , ये घायल दिल लिए  तेरे शहर  में।  मासूमियत नज़ारों  की  प्याले की बहार है.  छलकती मदहोशी तेरे रंजो ग़म का इकरार है, बड़े मासूम हो आप क़ैद कर ली हो दिल में.  ऑंखें सबनमी  जो प्यार कर रहे हैं.  ये घायल दिल लिए तेरे शहर  में। .  अवधेश कुमार राय  :"अवध"

ज़िन्दगी

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कुछ तीखा सा कुछ नरम है. ऐ ज़िन्दगी तेरा क्या रंग है. कुछ बुझी - बुझी कुछ जली - जली. क्यों गफलतों से तू बदरंग है. कुछ नज़ाकत सिख ले हमसे. क्यों खफा- खफा तेरा रंग है. सुना था तुझसे किसी की चाहत रही, कह न सकी साकी यही गम रही.

इज़ाज़त

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इतनी इज़ाज़त हो फकत सनम तेरी चाहत हो. अधरों पर मुस्कान आँखों में इज़ाज़त हो. न हो ख़ामोशी की सुर्ख परत. दिल का कोना - कोना मोहब्बत की आहट हो. ज़रा ज़र्रे से केह दो ये आधी अधूरी रवायत है. चाहत का अफसाना,लिए सनम तेरी इज़ाज़त है. अवधेश कुमार राय "अवध"